बच्चों को अनुशासित बनाने के लिए अपनाएं ये यूजफुल टिप्स

 


बालपन


बच्चों की परवरिश के दौरान अनुशासन का सबसे अहम रोल होता है। अनुशासन से ही बच्चों को जिम्मेदार बनाया जा सकता है, इसलिए हर पैरेंट्स की इच्छा होती है कि उनका बच्चा हमेशा अनुशासन में रहे। आप भी अपने बच्चे को अनुशासित रखने के लिए कई प्रयास करती होंगी। इसके लिए कई बार आप अपने बच्चे की गलती पर कठोर भी हो जाती होंगी और उसे सजा भी देती होंगी। लेकिन बच्चों को अनुशासित बनाए रखने के लिए डांटना या सजा देना जरूरी नहीं है।


 


सजा से नहीं मिलता सबक


हमेशा याद रखें कि बच्चों को सजा से कोई सबक नहीं मिलता है, बल्कि इससे तो बच्चे और जिद्दी हो जाते हैं। इतना ही नहीं, वे बात-बात पर बहस करने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि सजा बच्चे को गलत से सही सीखने में कोई मदद नहीं करती, इसलिए चिल्लाने और डांटने का कोई फायदा नहीं। बच्चा अगर अनुशासित व्यवहार न भी कर रहा हो, तब भी आप उसके साथ प्यार से ही पेश आएं। बच्चे को विश्वास में लेकर इस व्यवहार की वजह जानें और उसकी मानसिकता बदलें। इसके बाद उसे सुधरने का मौका दें। इस तरह यकीनन आपको बेहतर नतीजे मिलेंगे।


 


सहम सकता है बच्चा


सजा की वजह से आपके और आपके बच्चे के बीच में एक तरफ जहां डर की दीवार खड़ी हो सकती है, वहीं दूसरी तरफ लगातार सजा मिलने की वजह से बच्चा सहम भी सकता है। वह यह सोचकर तनाव में भी रहने लग सकता है कि गलती होने पर उसे सजा मिलेगी। यह डर और तनाव बच्चे में बड़े होने  तक बना रह सकता है, इसलिए बच्चे को अनुशासित बनाने के लिए सजा का नहीं प्यार का सहारा लें।


 


सीमा निर्धारित कर दें


हमेशा घर से जाने से पहले बच्चे को अच्छी तरह समझा दें कि क्या करना है और क्या नहीं। बेहतर होगा कि आप उसके लिए एक सीमा निर्धारित कर दें। अगर बच्चा उस सीमा में नहीं रहता है, तो घर आकर उससे इस बारे में बात जरूर करें और आगे से ऐसा फिर कभी न हो ये जरूर सुनिश्चित कर लें।


 


दूसरों के सामने बिल्कुल न डांटें


बच्चे भी बड़ों की तरह ही आदर के हकदार होते हैं, इसलिए अगर बच्चा कोई गलती कर भी दें तो किसी के सामने तो उसे बिल्कुल न डांटें। लेकिन अकेले में जाकर उसे बताएं कि उसने गलत किया। इस तरह वह आपके लिए भी नजरिया सही रखेगा और उसे अंदर ही अंदर यह अहसास भी होगा कि गलती करने के बावजूद आपने सबके सामने उसकी बेइज्जती नहीं की। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि बच्चे बहुत जल्दी भावुक हो जाते हैं और अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।


 


कड़ी नजर ही हो काफी


सजा देने की बजाय बच्चों को प्यार से समझाएं और सोचें कि बच्चा गलत बातें कहां से सीख रहा है? हाथ उठाने की गलती न करें। आपकी बातों का बच्चों पर ऐसा असर होना चाहिए कि एक कड़ी नजर ही उनके लिए काफी हो और वे समझ जाएं। उन्हें इतना प्यार दें कि वे खुद से जुड़ी छोटी से छोटी बात भी बेझिझक आप से शेयर करें। बच्चों के साथ इतना अपनापन रखें कि वे आपकी हर बात सुनें। बच्चे हैं तो नादानी भी करेंगे। ऐसे में उन्हें समझा कर छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करना जरूरी है। अगर बच्चे सीमा से बाहर हो जाएं, तो उनके साथ सख्ती से जरूर पेश आएं, लेकिन कोई कठोर सजा न दें।


 


ईनाम और सजा


बच्चा सबसे पहले जो भी सीखता है, अपने पैरेंट्स से ही सीखता है। इसलिए पैरेंट्स को हमेशा खुद भी अनुशासत में रहना चाहिए। इससे बच्चा अपने आप ही अनुशासित बनेगा। इसके बाद भी बच्चा अनुशासित नहीं रहता हो, तो ईनाम और सजा का तरीका अपनाना चाहिए। इसका मतलब है कि जब बच्चा कुछ अच्छा करे, तो उसे ईनाम जरूर दें। ईनाम में जरूरी नहीं है कि आप बच्चे को कुछ महंगा ही खरीद कर दें, बल्कि आप कुछ भी उसका फेवरेट उसे दे सकती हैं, चाहे वह उसका फेवरेट खाना हो, कोई बुक हो, कहीं घूमने जाना हो या फिर उसका फेवरेट कार्टून देखना हो। इससे उसे और अच्छा करने की प्रेरणा मिलेगी। वहीं अगर बच्चा अनुशासन में न रहे, तो उसे मारने-पीटने की जगह उसकी फेवरेट चीजों से वंचित करें। इससे उसे अपनी गलती का अहसास जरूर होगा।


 


(क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट रेणु भाटिया से बातचीत पर आधारित)