न कोलेस्ट्रोल, न वसा फिर भी स्वाद

डॉ. बिमल छाजेड़

निदेशक

साओल हार्ट सेंटर, नई दिल्ली

 

उमेश कुमार सिंह

 

क्या कभी आपने सोचा है कि हमारा मनपसंद व्यंजन हमें इतना स्वादिष्ट क्यों लगता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्वाद पहचान कराने वाली कोशिकाएं, मनपसंद भोजन लेने पर या जो व्यंजन हमें स्वादिष्ट लगता है लेने पर तीक्ष्ण उत्तेजना उत्पन्न करती हैं जो हमें स्वाद का एहसास कराती हैं। भोजन में मीठे के प्रति हमारा आकर्षण सर्वव्यापी है और भारतीयों का मीठे के प्रति कुछ विशेष ही लगाव है। एक शोध के अनुसार वर्ष 1986 की अपेक्षा आज हम 20 प्रतिशत अधिक चीनी का उपयोग कर रहे हैं। हमारी मानसिक धारणा के अनुसार बिना मिठाई का खाना हमें एक अधूरेपन का एहसास कराता है व एक बहुत बड़ी गलत धारणा हमारे दिमाग में घर कर चुकी है कि चर्बी रहित खाना, चाहे कितना भी चीनी युक्त हो, शरीर पर वजन नहीं बढ़ाता तथा हमारा अवचेतन मन ऐसे स्वाद की कल्पना ही नहीं कर पाता जो बिना घी, तेल, मक्खन आदि से बने खाद्य पदार्थों से मिला हो।

हालांकि इस प्रकार के भोजन का सेवन करना गलत नहीं है मगर गलत है कि उच्च वसा युक्त भोजन को ग्रहण करना. साधारणतया वसा भोजन में हुए भी दिखाई नहीं देता। दिखाई देने वाले हमें घी, मक्खन, खाने के तेल, सलाद वाले तेल आदि से प्राप्त होते हैं। घी जो ऊंचे तापमान पर पिघलते हैं और सामान्य तापमान पर ठोस रहते हैं वे वसा कहलाते हैं व भोजन में किसी भी प्रकार का तेल प्रयोग किया जाए कोलेस्ट्रोल अवश्य ही बढ़ता है। कुछ खाद्य पदार्थों में अधिक मात्रा में संतृप्त मात्रा छिपी होती है इसलिए ऐसे पदार्थों का इस्तेमाल से जहां तक संभव हो बचना चाहिए जैसे क्रीमयुक्त दूध, अंडा, मीट, मछली, पनीर। इस प्रकार का भोजन लेने से हम स्वयं ही हृदय रोगों को बुलावा देते हैं। हृदय रोगों का मुख्य कारण है-अत्यधिक मात्रा में बढ़ता कोलेस्ट्रोल जो हृदय में जम जाता है व रक्त की आवाजाही को अवरोधित कर देते है। तो इस कोलेस्ट्रोल को अपने शरीर में अधिक मात्रा में घर करने ही क्यों दिया जाए. लेकिन इसका क्या उपाय है?

इसका एक ऐसा उपाय है जिससे न तो आपके स्वाद में कमी आएगी और न ही कोलेस्ट्रोल या वसा आपके शरीर में आक्रमण कर पाएगा. लोगों के स्वभाव को इतनी जल्दी आसानी से बदला नहीं जा सकता है भोजन में जीरो ऑयल अवधारणा को सामने लाकर कोलेस्ट्रोल के खतरे को कम करने में भी मदद मिली है। हमारे देश में नाश्ता या नमकीन तैयार करने के लिए खूब तेल-घी इस्तेमाल करने की परंपरा है जो हृदय रोगियों के लिए बहुत ही खतरनाक है। इसलिए इन तरीकों को अपनाकर देखिए-

1. भूनना: भूनना तथा बेक करना लगभग एक समान है. यह कार्य 120 डिग्री सी तथा 260 डिग्री सी तापमान के बीच ओवन में किया जाता है। साधारणतया, पापड़ को भूना जाता है जबकि ब्रेड, केक तथा बिस्किट पकाए जाते हैं. भोजन को थोड़ी कड़ी आंच पर या थोड़ी कड़ी आंच पर या थोड़ी नमीदार आंच पर पकाया जाता हैं अगर भोजन अधिक नमीदार है तो पकाने के लिए भोजन का तापक्रम शुरू में नमीयुक्त होना चाहिए ताकि ठंडे पदार्थ अनुकूल तापमान पर लाया जा सकें। भूनना तथा पकाना प्रक्रिया द्वारा ओवन में ताप को विभिन्न क्रियाओं द्वारा परिवर्तित किया जाता है। कनवेक्शन तरंगे ओवन के तापमान को एक समान रखती हैं। इस प्रक्रिया का यह लाभ है कि इसमें तेल बिल्कुल भी प्रयोग में नहीं लाया जाता तथा भोजन स्वाद से भरपूर पकता है।

2. उबालना: उबालने का मतलब है पानी में पकानां। इस माध्यम से पानी में ताप परिवर्तित होता है। इस प्रक्रिया में पानी बर्तन के साइड/किनारों से ताप लेता है, जिस बर्तन में पकाया जा रहा है, जब तापमान बहुत उग्र हो जाता है तो भोजन के उबलने की क्रिया शुरू हो जाती है। पानी ताप का कुचालक होता है इसलिए अन्य तरल पदार्थों की अपेक्षा इसे अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। पानी के उबलने का तापमान 100 डिग्री सी होता है तथा अधिक तापमान पर इसके स्वरूप में बदलाव आने लगता है।

3. भाप द्वारा पकाना: भाप पकाने का एक माध्यम है। यह बिना पानी के कुकिंग तथा प्रेशर कुकिंग है। इस विधि द्वारा पकाने में नमीदार तापमान की आवश्यकता होती है। भोजन थोड़े पानी में भाप द्वारा पकाया जाता है तथा पानी रहित कुकिंग में खाद्य पदार्थ में उपलब्ध पानी को ही भाप के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्रेशर कुकर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा कम समय में भोजन तैयार किया जाता है तथा प्रेशर बढने से उबलने के लिए तापक्रम बिंदु में अपने आप बढ़ोत्तरी होती है। भाप द्वारा भोजन पकाने में, खाद्य पदार्थ कुकर में निर्मित भाप में पक जाता है। भाप में खाद्य पदार्थ पकने की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि पदार्थ का तापमान भी भाप के तापमान तक न पहुंच जाए।