कोरोना काल और मुस्लिम पर्व ईद :- ज़ाकिर सिद्दीकी

रिपोर्ट नूरुल इस्लाम


प्रेमनगर/फतेहपुर, 
 वैश्विक महामारी का रूप धारने वाली प्राकृतिक आपदा कोरोना वायरस का प्रकोप लगातार जारी है, जिसने विश्व स्तर पर तबाही मचाया है, और लाखों लोगों को मौत के मुंह में ढकेल दिया। इस बीच बड़ी चुनौती आने वाले इस्लामिक पर्व ईद की होगी जो सामाजिक सामूहिकता समरसता एवं एकता का प्रचारक है। रमजान का महीना खत्म होने के बाद अत्याधिक उल्लास व उत्साह से मनाया जाने वाला यह पर्व मुस्लिम समुदाय के लिए बड़ी महत्ता रखता है, जिसमें सामूहिक तौर पर एकत्र होकर दो रकात नमाज अदा करने और बधाई देने का आयोजन किया जाता है।  परंतु इस कोरोनाकाल में देशव्यापी लाक डाउन के दौरान यह संभव नहीं। एहतियात करना इस्लाम का एक हिस्सा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस्लाम धर्म ने हर उस कार्य से रोका है जिससे दूसरों के लिए संकट पैदा हो इसीलिए महामारी के इस युग में ईद की खरीदारी से बचना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। 


ईद को सादगीपूर्ण मनाएं और फिजूलखर्ची से बचें।


        ईद को इस्लामी निर्देशानुसार साधारण तरीके से मनाना और फिजूलखर्ची से बचना इस्लाम का आदर्श है। पवित्र कुरान के सूरह इसरा आयत नंबर 26, 27 में अल्लाह ताला ने  फुजूलखर्ची से बचने और फुजूलखर्ची करने वाले को शैतान का भाई कहा है। इसी प्रकार सरकार के आज्ञानुसार समूह में ईद की नमाज पढ़ने से बचना ही हमारा धर्म होना चाहिए। इस्लाम धर्म ने जहां जीवन के हर मोड़ और हर आपातकालीन स्थिति में हमें दिशा निर्देश दिया है वहीं ईद की नमाज सामूहिक तौर पर ना पढ़ पाने की स्थिति में हमें संकेत दिया है कि हम 2 रकात नमाज अपने अपने घरों में पढ़ें और एक दूसरे से गले मिलकर बधाई देने की बजाय "तकब्बलल्लाहु मिन्ना व मिनकुम" कहें। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें घरों में रहें खुद सुरक्षित रहें दूसरों को सुरक्षित रखें।
ज़ाकिर सिद्दीक़ी
फ़तेहपुर, उत्तरप्रदेश