लॉकडाउन के कारण CM योगी आदित्‍यनाथ को तोड़नी पड़ी परम्‍परा, पहली बार रामनवमी पर गोरखनाथ मंदिर में नहीं

रिपोर्ट अबरार देवरया                                            गोरक्षपीठाधीश्वर और सीएम योगी आदित्यनाथ ने लोककल्याण के लिए एक बार फिर परम्परा तोड़ दी है। कोरोना से बचाव के लिए देश भर में किए गए लॉकडाउन के बीच यह पहला मौका है जब रामनवमी पर वह गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में नहीं हैं। उनकी गैरमौजूदगी में मंदिर के प्रथम पुजारी योगी कमलनाथ ने धार्मिक अनुष्ठान पूरे किए। योगी सन्यासी हैं और सूबे के मुखिया भी। वह तमाम धार्मिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं का पालन करते नज़र आते हैं लेकिन जब कभी समाज को जरूरत हो उन परम्पराओं को तोड़ने में हिचकते नहीं हैं।


दरअसल, नाथ पंथ की परम्परा भी यही है कि वह किसी रूढि़-परम्परा में बंधकर न रहे बल्कि देश, काल, परिस्थिति और लोककल्याण के लिए जब जो जरूरी हो वो करे।
अखिल भारत वर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ-योगी महासभा के अध्यक्ष योगी आदित्यनाथ ने रामनवमी पर वर्षों पुरानी परम्परा तोड़कर यही संदेश दिया है। योगी पहले भी कुछ मौकों पर परम्पराएं तोड़कर नाथ पंथ की परम्परा निभाते रहे हैं।


गोरखनाथ मंदिर से वर्षों से जुड़े लोग इसके गवाह हैं। योगी आदित्यनाथ चैत्र और शारदीय नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखते हैं। नवरात्रि में नौ दिन वह शक्ति की उपासना करते हैं। गोरखपुर के सांसद रहने के दौरान वह नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना में कलश स्थापना के स्थान पर यानि मंदिर में अपने कार्यालय और आवास के प्रथम तल पर रहा करते थे। लेकिन करीब डेढ़ दशक पहले नवरात्रि के दिनों में गोरखपुर में हुई एक रेल दुर्घटना के समय पहली बार यह परम्परा तोड़ वह मंदिर से बाहर निकलकर घटनास्थल पर लोगों की मदद करने पहुंचे थे।


इस बार होली में भी तोड़ी 24 साल पुरानी परम्परा
सीएम योगी आदित्यनाथ ने पिछले महीने होली में भी 24 साल पुरानी परम्परा तोड़ दी थी। वह साल 1996 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से निकाली जाने वाली भगवान नरसिंह की शोभायात्रा में शामिल होते आए हैं। लेकिन, कोरोना वायरस की वजह से इस साल इस यात्रा का हिस्सा नहीं बने। 24 साल में यह पहला अवसर था जब गोरखपुर में रहते हुए भी योगी आदित्यनाथ नरसिंह शोभायात्रा का हिस्सा नहीं बने। दो दशक पुरानी यह परंपरा इस साल पहली बार टूटी।


नाथ पंथ की विशेषता-
लोक कल्याण को सर्वोपरि मानने वाले नाथ पंथ की खासियत ये है कि वह किसी संकीर्णता को नहीं मानता। उसका दायरा बहुत बड़ा है। इतना बड़ा कि कि इसमें बौद्ध, शैव और योग की विभिन्न परम्पराओं का समन्वय दिखाई देता है। यह हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है। शिव इस सम्प्रदाय के प्रथम गुरु और आराध्य हैं। गुरु गोरखनाथ इसके संस्थापक हैं। 'नाथ पंथ का समाज दर्शन' सहित नाथ पंथ पर एक दर्जन से अधिक किताबों के सम्पादक और लेखक डा.प्रदीप राव के शब्दों में, 'नाथ पंथ का अभ्युदय जड़वत पुरानी परम्पराओं को तोड़कर लोककल्याणार्थ नई परम्पराओं के सृजन के लिए हुआ था। महायोगी गोरखनाथ से लेकर अब तक गोरक्षपीठाधीश्वरों ने लोककल्याणार्थ नई परम्पराओं के सृजन और पुरानी परम्पराओं को किसी भी समय तोड़ने में हिचक नहीं दिखाई।' यही वजह है कि नाथ पंथ का विस्तार इतना बड़ा होता गया कि इसके कुछ गुरुओं के शिष्य मुसलमान, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के भी थे। यह परम्परा आज भी चली आ रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जरूरत के हिसाब से पम्पराओं को तोड़ते और नई राह तय करते हुए योगी आदित्यनाथ, नाथ पंथ की परम्परा के वाहक बने हुए हैं।


-लोक कल्याण के लिए परम्पराएं तोड़ना, नई राह गढ़ना ही नाथ पंथ की परम्परा 
-अखिल भारत वर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ-योगी महासभा के अध्यक्ष भी हैं योगी
-कोरोना की वजह से योगी ने होली में भी तोड़ दी थी 24 साल पुरानी परम्परा 
-24 साल में पहली बार भगवान नरसिंह की शोभायात्रा में शामिल नहीं हुए थे 
-नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रख, रामनवमी पर मंदिर में कन्या पूजन करते थे योगी
-इस बार नौ दिन व्रत तो रहे लेकिन कोरोना से जंग के नाते रामनवमी पर नहीं आ पाए