भारी आवाजों का दौर खत्म हुआ : रजा मुराद

 


 


लगभग तीन दशक पुरानी बॉलीवुड़ इंड्रस्ट्री में भारी आवाजों के कलाकारों का बोलबाला था। हीरो या विलेन के लिए ज्यादा सुंदर दिखना या बॉडी बिल्डर होने से ज्यादा भारी आवाज को महत्वपूर्ण माना जाता था लेकिन वो दौर बिल्कुल खत्म हो चुका है। आवाज के जादूगर, विलन बनकर भी कई दशकों से लोगो के दिलों पर राज करने वाले अभिनेता जिनका जादू हर पीढ़ी के सिर चढ़कर बोलता है। कई भाषाओं मे काम करने वाले जानदार व शानदार आवाज के बादशाह रजा मुराद से वरिष्ठ पत्रकार योगेश कुमार सोनी की खास बाचचीत के मुख्य अंश।


 


बातों में ठहरावट और वाक्यों में धैर्यता किस वजह से लुप्त होती जा रही है।


अब जैसा दर्शकों को पसंद वैसा ही बॉलीवुड़ करने लगा। ‘जैसा देश वैसा भेश’ वाली कहावत की तर्ज पर सब चलने लगा। यदि पहले की तरह शब्द या वाक्यों का प्रयोग होगा तो दर्शक हंसने लगेंगे जिस वजह से सिनेमा जगत की गंभीरता खत्म हो जाएगी। हर क्षेत्र में बदलाव हुआ है तो निश्चित तौर पर बॉलीवुड़ में भी होना स्वभाविक है।


 


भारी आवाज केवल आप लोगों की पीढ़ी तक ही सीमित होकर रह गई। आपका स्वंय का भी एक्टिगं का इंस्टिट्यूट है। क्या आवाज को दमदार करने के लिए भी कोई क्लॉस दी जाती है।


आपका यह प्रश्न बेहद दमदार है व मुझे बहुत अच्छा लगा। कभी-कभी यह बात मैं भी सोचता हूं कि भारी आवाज अमिताभ बच्चन, अमरीश पुरी, सुरेश ओबराय व मेरे सिवाय कुछ कलाकारों तक ही सीमित रह गई। यह बात सौ फीसदी सच व गंभीर बात है कि अब भारी आवाज वाले कलाकार दूर-दूर तक दिखाई नही देते। जैसे कि हम आज डायनासोर कि चर्चा करते है वैसे आने वाले समय मे भारी आवाज की चर्चा हुआ करेगी। मैं अपने इंस्टीट्यूट मे लोगों को भारी आवाज के लिए टिप्स देता रहता हूं। सिगरेट पीने से भी मना करता हूं ताकि आवाज मे कोई परेशानी न आए।


 


बॉलीवुड मे काम कर रही युवा पीढ़ी की उच्चारणविधी मे वो मजबूती व शब्दों मे उतनी पकड़ नही जितनी पुराने जमाने के कलाकारों मे होती थी।


समय के साथ कई चीजें बदल जाती है। अब लोगों को सबकुछ शॉटकट चाहिए। आजकल की युवा पीढ़ी का किसी भाषा का लिखने व बोलने के अंदाज के तरीके को पूरी तरह ही बदल दिया। यदि आज शब्दों को ज्यादा तरीके या मजबूती से बोला जाएगा तो युवा दर्शक सिनेमा को पसंद नही करेगा। उदाहरण के तौर पर ‘ग़लती’ शब्द की उच्चारणविधि बहुत सुन्दर तरीके से की जा सकती है लेकिन लोग इस शब्द को ‘गल्ती’ बोलते है।हालांकि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है। शॉटकट मैसेज लिखते-लिखते अब युवाओं ने बालने मे भी यह प्रक्रिया अपने ऊपर लागू कर ली। भाषाओं के लेकर इससे होने वाले नुकसान आगे और भी ज्यादा हो सकते है।


 


पहले की फिल्मे दर्शकों के दिल व दिमाग मे छप जाती है। दर्शक उस करेक्टर का सालों तक जिया करते थे। अब ऐसा कुछ देखने को नही मिलता।


अब से तीन दशक पूर्व एक अलग ही दुनिया थी लेकिन अब इतनी तकनिकीयों का निर्माण हो चुका है जिस वजह से सिनेमा क्या पूरे कि देश की तस्वीर तरह बदल चुकी है। एक तो पहले जम़ाने मे फिल्में कम बनती थी व दूसरा लोगों के पास मनोरजन के रुप सिनेमा सबसे बड़ी चीज होती थी।इसके अलावा लोग इतने व्यस्त नही होते थे। लेकिन अब लोगों के पास मनोरंजन के रुप मे कई साधन है व अब फिल्मे के सिवाय अन्य कई तरह के कार्यक्रम है जिस वजह से लोगो के दिमाग पर सिनेमा इतना असर नही छोड पाता।अब तो सिनेमा को एक सिरियल की तरह देखा जाता है व थोडे समय के मनोरंजन तक ही सीमित रह गया।


 


सिनेमा की रुप-रेखा पूरी तरह बदल चुकी है। कई फिल्मों के बाद कोई एक अच्छी फिल्म आती है। क्या कारण है?


इस बात को लेकर दो तरह की समस्याएं सामने आने लगी। पहली तो अब बिना अनुभव के लोग फिल्में बनाने लगे। दूसरा फिल्में ज्यादा बनने लगी। अब तो कई बार कहांनिया रिपीट भी हो जाती हैं। डॉरेक्टरों व प्रोड्यूसरों की संख्या अधिक होने से फिल्म की स्क्रीप्ट मे ठहरावट की कमी आ गई। हम सब इस बात से भलिभांति परिचित है किसी भी चीज की अति बुरी होती है।यादा फिल्म बनना फिल्मी उद्योग जगत के लिए तो सही बात हो सकती है लेकिन दर्शकों के लिए नही। अब आधी से ज्यादा स्क्रीप्ट तो बिल्कुल दमदार नही होती जिस वजह से कलाकारों की मेहनत भी बेकार जाती है। इसके अलावा कलाकारों की छवि पर भी फर्क पड़ता है।


 


क्या आप आज के कलाकारों की एक्टिगं मे कुछ नया देखते हो। क्यापरिवर्तन महसूस करते हो पहले व मौजूदा कलाकारों मे।


सिनेमा मे काम करने वाले हर कलाकार को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। क्योंकि एक्टिगं मे जरा सी चुक कलाकार का करियर खत्म कर देती है। क्योंकि अब विकल्प बहुत ज्यादा है। यदि किसी कलाकार की एक्टिगं की वजह से पिक्चर पीट जाती है तो डारेक्टर व प्रोडयूसर उसको दोबारा मौका नही देते। किसी भी फिल्म का दामोदार स्क्रीन के कलाकारों के कंधों पर होता है। इसलिए हर युग का कलाकार चाहे वो पहले के समय का हो या अभी का वह हमेशा अपनी एक्टिगं मे जरुरत अनुसार अपना सर्वशेष्ठ प्रर्दशन करता है। जैसा कि मैने भी पहले भी कहा कि समय के साथ चीजें बदल रहती है। जैसा दर्शको की डिमांड होती है वैसे ही कलाकारों को अपनी एक्टिगं मे परिवर्तन करना पड़ता है। पहले के जमाने मे इतनी तकनीकी नही थी। अब तो इफेक्ट के साथ व अच्छी एडीटिगं करके फिल्म मे जान डाली जाती है। हमारे जमाने मे यह सब नही था व मेहनत थोडी ज्यादा करनी पड़ती थी